बस बाकीं हैं वो दो पल जो
पहले सोने से बचे हुये।
बस दो क्षण का श्पर्श सखी
गुथी उंगलियों मे रचे हुये।
आज पीठ फेर सो'गी जब
मै भोला बालक बन आऊंगा
तेरे मस्तक के तिल को छूकर
बस इतना सा कह जाऊंगा।
तुम कल जाओगी दूर बहुत,
पर दूर बहुत तुम कब से थी,
मै मानस था भूं का तत्पर
तुम उच्च कोटि सदा नभ से थी।
तेरे पांव को चादर मे ढक, मै
तुम्हे सहलाने से रुक जाऊंगा।
तुम्हे बाहों मे भर तो लेता
पर छूने से भी कतराऊंगा।
फिर ओर पलट मेरी तुम प्रिय
बंद नयन से मुझे निहारोगी हलका।
मै समझ यही सो जाऊंगा कि,
था प्रेम तुम्हारा मुझपर भी छलका।
-मनव
Monday, February 04, 2008
Subscribe to:
Posts (Atom)