जबाँ हमारी की खता, इतनी भी थी क्या?
अपनी आँखों की वैह्शियत का नज़ारा तो देखिये |
की उनसे, छूरियों पे छूरियाँ चलाते हैं यूं आप
और हमारा 'उफ' बोलना भी कत्ल हो गया?
मरकर ही शायद सुकून लिखा मेरी कहानी में
दे दे कुछ ऐसा की निकल जाये हलक से ये जान |
होंठों से लब्ज सांप सा छोड़ते हैं यूँ आप
आज लाल खून में, ज़हर का दख्ल हो गया |
मस्जिद नहीं जाता मैं अब, कुरान पढता तेरी दर पर
मांगता मन्नत जीने की तुमसे, सुन ले मेरे परवर |
अपनी साँसों से लकीरें मेरी, छेड़ते हैं यूँ आप
आज मेरा खुदा भी तेरी हमशक्ल हो गया |
Tuesday, March 15, 2011
Tuesday, March 01, 2011
आज तो बस आपकी आँखों को देखेंगे
आज अपने दिल के अनल पर
मलमल से तेरे बदन को सेंकेंगे |
फुरसत के दिन हैं, आज तो
बस आपकी आँखों को देखेंगे |
छुएंगे नहीं जरा सा, तनिक भी
भूरे होंठो के कम्पन्न को
कच्ची, हांथो की, उँगलियों से
तिनका तिनका समेटेंगे |
मरने के दिन हैं, आज तो
बस आपकी आँखों को देखेंगे |
सांप से हांथों का डसना,
धागे से बालों का सिकुरना
साँसों को आपकी, अपनी
इक्छुक साँसों से लपेटेंगे |
खोने के दिन हैं, आज तो
बस आपकी आँखों को देखेंगे |
मलमल से तेरे बदन को सेंकेंगे |
फुरसत के दिन हैं, आज तो
बस आपकी आँखों को देखेंगे |
छुएंगे नहीं जरा सा, तनिक भी
भूरे होंठो के कम्पन्न को
कच्ची, हांथो की, उँगलियों से
तिनका तिनका समेटेंगे |
मरने के दिन हैं, आज तो
बस आपकी आँखों को देखेंगे |
सांप से हांथों का डसना,
धागे से बालों का सिकुरना
साँसों को आपकी, अपनी
इक्छुक साँसों से लपेटेंगे |
खोने के दिन हैं, आज तो
बस आपकी आँखों को देखेंगे |
Subscribe to:
Posts (Atom)