कर सिरहाने एडियाँ घसीट कर
साफ़ फर्श पर गंदे पाव लिए चलता हूँ |
कोने में पड़े ढेर, पर खुली पड़ी
उलटी चिथडी किताब के एकांत में
अतीत का शोर सुन चलता हूँ |
मेज पर सजी, रुकी घडी के
चलते काँटों से बेसबर मैं
दीवारी शीशे की पर्छाइ में चलता हूँ |
मैं चलता तो हूँ पर, हर चेहरे में
उस नूर की तलाश करता
अपनी बेवफाई में जलता हूँ |