मैं कौन हूँ? साधारण सा प्रश्न, जिसका उत्तर अत्यंत ही दुर्लभ है। इस जिज्ञासा मे, मैने भी असंख्य क्षण, विहव्लता मे व्यतीत किये हैं। परंतु उत्तर से आज भी उतना ही अनभिज्ञ हूँ, जितना जन्म होने पर इस बात पर था कि "प्रभु" ने मुझे नग्न ही क्यो भेज दिया? अतः, अपनी गरिमा जन्म के क्षणोपरात ही मान-मर्दित होने के बाद मैने स्वयं को मान-रहित, साधरण और 'बिना कारण हँसने' वाला बना लिया।
"भौतिकी" से प्रेम होने के उपरांत, मुझे असमय हँसने का एक कारण तो मिल गया, परंतु तथापुरांत मैं संसॄति मे "पागल" के नाम से ख्यातिप्राप्य हो गया। पुस्तको से अदॄतीय लगाव होने की दशा को देखते हुये कुछ ने मुझे "वैज्ञानिक" भी कहा। कालान्तर मे किसी अज्ञात कारणो से मेरे सम्बोधन मे "माँ" नामक स्वर भी मुखरित हुये (वो मुझे पुकारते थे कि उस प्रख्यात अपशब्द का प्रयोग करते थे, इस बात कि मुझे अभी तक संशा है)।
"समय की कमी" के इस युग मे, मैं अपने आप को सदा-सर्वदा मुक्त पाता हूँ। उन्ही कुछ क्षणो मे यदा-कदा चित्रांकन करने का प्रयास करता आया हूँ। लेखनी और सॄजन, सामर्थानुरुप, कभी-कभी कर लेता हूँ। पर इन सब से परे, मै निकट वासी प्रणियों को मानसिक यंत्रणा देने मे प्रवीण हूँ।
उपसंहार मे इतना ही कहूँगा कि - ईश्वर इतनी बडी गलती सहत्र वर्षो मे भूल कर ही करता है।
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1 comment:
ishwar ki is itni badi galti se shayd hamein kuch mila hai.kya,samjhaya nahi ja sakta par kuch to hai
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