किताबों की लकीरों मे
दिखे जब एक ही चेहरा।
दिलो के हर किवाड़े पर
लगे जब एक ही पहरा।
हवा की हर फ़िज़ाओ मे
आवाज़, जब एक सुनाई दे।
गगन के चलते बादल मे
चेहरा एक दिखाई दे।
हरी, जब उड़ती चुनरी की,
झलक सिर्फ़, एक काफ़ी हो।
खता उसकी, हर के लिये
पास केवल तुम्हारे माफ़ी हो।
दौड़ती, चलती भीड़ो मे
उसे, यूँ झट से ख़ोज लेना।
उठते सुबह ही बिसतर से
नाम उसका रोज़ लेना।
चलते चलते पैंरों का
आचानक थम सा जाना।
लिख़ते लिख़ते हांथों का,
आचानक जम सा जाना।
गालों पर यूँ हाथ रख कर
घंटो बैठे रह जाना।
चुहले की मंद आंच पर भी
रोटी का रोज़ जल जाना।
बसों का आना और जाना,
जब इसका भी फ़र्क नही पड़ता।
जब बीच ज़िग्री दोस्तों के
मन किसी और का करता।
उसका कुछ भी ना होकर
तुम उसका सब कुछ हो जानो।
उससे बात ना करके भी,
तुम उसको अपना हो मानो।
रात अब जिन्दगी मे जब
नीदं लेकर के ना आये।
घड़ी के घंटों की सुई
मिनट के वेग से जाये।
ऐसी हालत जब होती है
पागल, लोग, बेशुमार कहते हैं।
खुदा की इस इबादत को
हम तो सिर्फ़ प्यार कहते हैं।
हम तो सिर्फ़ प्यार (infatuation :) )कहते हैं।
- मनव
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
words can be as playful as a boy like you! :-)
awesome!!
:)
nice one maa.....sidhu ... :)
i wont b online anymore..but will keep in touch wid you..bye...no more mails...no more orkutting..nothing....bye.. :)
i remember u told me once. but what is "manav"
man is 'maanava', I used it as my nick and by mistake I dropped it once to 'manav', tab se I use 'manav.' It's kinda short form of manish :)
Post a Comment