Tuesday, July 31, 2007

क्यों प्यार करता हूँ तुम्हे मै

क्यों प्यार करता हूँ तुम्हे मै,
मै ढूंढता उसके बहाने।
मेरे सुर मे जो शब्द डाले
मै खोजता ऐसे तराने।

सीप सी आँखों के तल मे,
मोती नित क्यो पल रहा है?
परे पंखुड़ियों की लहर के
नीचे क्या क्या चल रहा है?

वर्क सोने का पहन कर
मुझको ऐसे ना रिझाओ।
पर्दे जिसमे एक ना हों
वो रूप वासत्विक दिखाओ।

स्वप्न देखा जो गोधुली मे
उसकी क्या तुम ईक स्मृति हो?
या, धुंध भरी, माया ही हो तुम,
कैसी विस्मयी तुम कृति हो?

-मनव

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