आज लगता है
बरसो बाद लिखने बैंठा हूँ।
आश्चर्य है!
हृदय के तार झंकृत क्यो नही हो रहे?
मन मे वेदना तो है,
पर आँखों की तरह मेरे शब्द क्यो नही रो रहे?
हैरान हँ!
ये वाक्य निश्तेज़ क्यो है?
स्याही तो बह रही है,
तो खाली ये पेज़ क्यो है?
अब मंत्र नही फुंकता,
रस आज क्यो लुप्त है?
घंटो से युहीं बैठा
हर भाव क्यो सुप्त है?
दे नही सकता, अब
मेर है सब शूल गया।
कुछ भी नही है सूझे,
शायद मै कविता लिखना भूल गया।
-मनव
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