Thursday, November 23, 2006

फ़िर किनारे आज खडा मै

फिर किनारे आज खड़ा मैं
थामने तेरा वो हाँथ।
भूल भूत और भविष्य को
आज दूंगा, फिर मै साथ।

आये थे ज़िन्दगी मे
एक अरमा बन के तुम
छा गयी खुशियाँ अनेको,
दुखः सारे हो गये थे गुम।

याद मुझे है, दिन वो अब भी।
तुम चले गये छोड के।
इन हांथो से दामन चुरा के,
सारे रिश्ते तोड़ के।

पथ का मै पत्थर था,
याआती-जाती मंज़िल सही।
मै कुछ नही-कुछ था नही-
ये बात रह गयी अनकही।

फिर नज़र आयी हो तुम, जब
जी रहा था, ले कर वो घात।
फ़िर किनारे आज खडा मै,
थामने तेरा वो हांथ।

-मनव

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