Thursday, November 23, 2006

इस दुखः की क्या है बिसात

जाओ उसे जकड़ो भुजाओं,
मे जो उगता सूरज नया।
खुशियों की दुनियाँ नई,
निर्बल तिमिर कब का गया।

तुम वीर अजर, प्रचण्ड तुम
प्रलय मे भी ना झुके।
आंधियों को भी मात दी,
अविरल अचल तुम ना रुके।

तुम तेज़ हो, उन्माद हो
विवेक-बाहु बल हो तुम।
दामिनिपति, ये मनुज श्रेष्ठ
विराट शक्ति दल हो तुम।

तुम आग हो, अंगार हो,
तुम प्रेरणा का हार हो।
तुम श्रेष्ठ हो, तुम श्रेष्ठ थे,
हीर की तुम धार हो।

तुम उठ कर बस आँखें दिखाओ,
स्र्वस्व उथल हो जयेगा।
इस दुखः की क्या है बिसात,
पत्थर तरल हो जयेगा।

उर्जा तुम, तुम्ही वेग,
'सबको' नचाये तुम्हारा 'भय'।
हे क्रान्तिदूत, हे कालजयी,
नमन धीर, तुमहारी जय ।

-मनव

औरो का मै बनना नही चाहता

व्याकुल सा हृदय लिये,
सूखी आभा मे पनपे,
एक मानस की कथा -
मै बनना नही चाहता।

मरूस्थल की साँसों सा,
केक्ट्स का काँटा,
अपनो मे गया बाँटा -
मै बनना नही चाहता।

आसाध्यों से पीडित,
दामिनी से गया मारा,
उफ़, ये बेचारा!
मै बनना नही चाहता।

हांथ दो मुझे तुम।
अब तुम ही मुझे उठाओ।
मै तेरा, औरो का
मै बनना नही चाहता।

-मनव

फ़िर किनारे आज खडा मै

फिर किनारे आज खड़ा मैं
थामने तेरा वो हाँथ।
भूल भूत और भविष्य को
आज दूंगा, फिर मै साथ।

आये थे ज़िन्दगी मे
एक अरमा बन के तुम
छा गयी खुशियाँ अनेको,
दुखः सारे हो गये थे गुम।

याद मुझे है, दिन वो अब भी।
तुम चले गये छोड के।
इन हांथो से दामन चुरा के,
सारे रिश्ते तोड़ के।

पथ का मै पत्थर था,
याआती-जाती मंज़िल सही।
मै कुछ नही-कुछ था नही-
ये बात रह गयी अनकही।

फिर नज़र आयी हो तुम, जब
जी रहा था, ले कर वो घात।
फ़िर किनारे आज खडा मै,
थामने तेरा वो हांथ।

-मनव

रस्तों से प्यार हो गया

रात के इस उजाले मे,
मैं अब भी जाग रहा हँ,
क्यो?
इन टूटे-फूटे रस्तों पर,
मैं अब भी भाग रहा हूँ।
क्यों?

दिन तो कब का ढल गया।
आ गया गन्तव्य कब का।
संगीत तो कब का ठहर गया।
पर,
मैं अब भी 'राग' रहा हँ।
क्यो?

(उत्तर की खोज़ मे)
इस काफ़िले के संग चलते-चलते,
उद्देश्य कहीं खो गया।
मंज़िलो की तलाश मे
शायद, रस्तों से प्यार हो गया।

-मनव

(Have fallen in love with the road.)

In the 'light' of the night
I am still awake.
why?
On these shredded, eroded road
I am still sprinting. but
why?

The dusk is long gone.
The target is already attained.
The music has stopped a long time ago.
but,
I am still singing. why?

In the quest of answer:
While walking with this pack,
The target has smeared away.
In search of avenues,
I have fallen in love with the road.

-Manav

मै कविता लिखना भूल गया

आज लगता है
बरसो बाद लिखने बैंठा हूँ।
आश्चर्य है!
हृदय के तार झंकृत क्यो नही हो रहे?
मन मे वेदना तो है,
पर आँखों की तरह मेरे शब्द क्यो नही रो रहे?

हैरान हँ!
ये वाक्य निश्तेज़ क्यो है?
स्याही तो बह रही है,
तो खाली ये पेज़ क्यो है?

अब मंत्र नही फुंकता,
रस आज क्यो लुप्त है?
घंटो से युहीं बैठा
हर भाव क्यो सुप्त है?

दे नही सकता, अब
मेर है सब शूल गया।
कुछ भी नही है सूझे,
शायद मै कविता लिखना भूल गया।

-मनव

Wednesday, November 22, 2006

प्यार तुमसे है

तेरी आंखो मे ठहरे समंदर की
चमक को आया, दुआ दे जाने के लिये।
तमन्ना मे इसी, अपने चाँद की
सदियां बीतीं, झलक ईक पाने के लिये।

तेरी सांसो की उस हवा को,
मेहसूस अभी भी कर सकता।
उन सोते हुये पलो को, आया हूँ
मै फिर से जगाने के लिये।

पलको पर बैठा मोती तेरे,
कल रात की सिसकिया सुनाता है।
खोली हैं मैंनें भी अपनी
नम आँखें, दिखाने के लिये।

तेरे चेहरे के नर्माहट
अचानक सी घुल रही है।
ये आईने होते ही है,
अकसर, धोखा दे जाने के लिये।

मैं लम्हों मे तुम्हे हूं ढूंढता,
रुकते नही ये शक्ल दिखाने के लिये।
नही रुकते लब्ज़ भी तेरे होंठो पर
प्यार तुमसे है, कह जाने के लिये।

-मनव

(I love you.)

To the spark of the ocean waiting inside your eyes
I have come to entreat its wellbeing.
In wake of this desire, for my moon,
eons have passed away, to get the slightest glimpse.

The scent of the air of your breath
can be still felt by me.
For those sleeping moments,
I have come to raise them again to life.

The pearl sitting on your lower eyelids,
tells me the story of last nights sobbing.
I too have opened my eyes
to show you the moisture there.

The softness of your face
is suddenly dissolving away.
What other intent do these mirrors have,
than to gull you, whenever possible.

I search you in the labyrinth of memories
they don't even stop by to show their faces.
Neither do words stop on your lips
to tell me - "I love you".

-Manav

Tuesday, June 27, 2006

जब गिराना ही था मुझे

जब गिराना ही था मुझे,
तो हाथ देकर क्यो उठाया?
हो नही सकता जो सच है,
क्यो मुझे सपना दिखाया?

सॉस रोकी किस लिये?
किस लिये चिराग तोड़े?
खेल सारा खत्म है अब,
टूटे दिल फिर, क्यो हैं जोड़े?

रौशनी मे भी तूने
घी के दीपक क्यो जलाये?
रात घनेरी थी जो पहले,
पुंज तिमरो मे मिलाये।

दौड़ती आँखो मे जगपति,
चैन वापस क्यो है आया?
मंज़िले थी ही नही तो,
दौड़ मे मुझको क्यो भगाया?

सुन ज़रा, बहरे खुदा
क्यो तूने मुझे ऐसा सताया?
जब हराना ही था मुझे तो,
खेल ऐसा क्यो खिलाया?

टूटती कश्ती को माझी
किस लिये दिया किनारा?
औरो को टक्कर दी मैंने,
पर, हाय मै अपने से हारा।

विद्रोह :-

गिर गया तो क्या हुआ!
मैं पुरुष, मैं आग हूँ।
मैं उठूंगा, मैं चलूंगा
आखिर, मैं तुम्हारा भाग हूँ।

-मनव

मैं भी रोना चाहता हूँ

वन्दना मेरी है तुमसे,
मेरे पथ को मोड़ दो।
वर्षों का सेवक मै तेरा,
अब ये बन्धन तोड़ दो।

राह चलते चलते तेरी,
अब मैं हो चुका हूँ चूर।
थक गया हूँ, ढेर हूँ मैं
अभिलाषा मेरी एक 'क्रूर'।

दे दे बस एक पल की मुक्ती,
दे दे बस एक पल का चैंन।
बेचैन, अदभुत उन क्षणो की
राह देखे हैं ये नैंन।

तेरे सफ़ल मंत्रो से अब मैं,
'स्वातंत्र विफ़लता' चाहता हूँ।
तेरी लकीर पर उगते सूर्य की
'स्वर्णिम ढलता' चाहता हूँ।

चाहता हूँ, प्रयास विफ़ल हो,
मुझको भी गिरना अब आये।
'दिन के अंधे' की ज़िन्दगी मे,
रात्री का प्रहर भी 'जगमगाए'।

तूने मुझको सब दिया, अब,
मैं भी खोना चाहता हूँ।
खुश नही हूँ मैं खुशी से,
मैं भी रोना चाहता हूँ।

- मनव

(I too want to cry!)

I humbly pray to you
deviate my path now.
Years I have served you
Break these shackles somehow.

Walking your way so long
Now, I am so out of fuel.
I am exhausted and fatigued
One wish I have, O' Cruel.

Just give me a moment of freedom
Just a moment of respite from wrath.
restless, for those amazing times
I have my eyes on the path.

Amongst your talisman of success
I now want freewill downward incline.
For the sun which rises on your set arc
I now want its golden decline.

I want my trial to fail
I want to learn to tumble.
In the life of blinded-by-day
I want the night to sparkle.

You gave me everything,
but now I too want to lose-dry.
I am no longer happy with happiness
I too want to cry.

-manav

मैं

मैं कौन हूँ? साधारण सा प्रश्न, जिसका उत्तर अत्यंत ही दुर्लभ है। इस जिज्ञासा मे, मैने भी असंख्य क्षण, विहव्लता मे व्यतीत किये हैं। परंतु उत्तर से आज भी उतना ही अनभिज्ञ हूँ, जितना जन्म होने पर इस बात पर था कि "प्रभु" ने मुझे नग्न ही क्यो भेज दिया? अतः, अपनी गरिमा जन्म के क्षणोपरात ही मान-मर्दित होने के बाद मैने स्वयं को मान-रहित, साधरण और 'बिना कारण हँसने' वाला बना लिया।

"भौतिकी" से प्रेम होने के उपरांत, मुझे असमय हँसने का एक कारण तो मिल गया, परंतु तथापुरांत मैं संसॄति मे "पागल" के नाम से ख्यातिप्राप्य हो गया। पुस्तको से अदॄतीय लगाव होने की दशा को देखते हुये कुछ ने मुझे "वैज्ञानिक" भी कहा। कालान्तर मे किसी अज्ञात कारणो से मेरे सम्बोधन मे "माँ" नामक स्वर भी मुखरित हुये (वो मुझे पुकारते थे कि उस प्रख्यात अपशब्द का प्रयोग करते थे, इस बात कि मुझे अभी तक संशा है)।

"समय की कमी" के इस युग मे, मैं अपने आप को सदा-सर्वदा मुक्त पाता हूँ। उन्ही कुछ क्षणो मे यदा-कदा चित्रांकन करने का प्रयास करता आया हूँ। लेखनी और सॄजन, सामर्थानुरुप, कभी-कभी कर लेता हूँ। पर इन सब से परे, मै निकट वासी प्रणियों को मानसिक यंत्रणा देने मे प्रवीण हूँ।

उपसंहार मे इतना ही कहूँगा कि - ईश्वर इतनी बडी गलती सहत्र वर्षो मे भूल कर ही करता है।