Thursday, November 23, 2006

इस दुखः की क्या है बिसात

जाओ उसे जकड़ो भुजाओं,
मे जो उगता सूरज नया।
खुशियों की दुनियाँ नई,
निर्बल तिमिर कब का गया।

तुम वीर अजर, प्रचण्ड तुम
प्रलय मे भी ना झुके।
आंधियों को भी मात दी,
अविरल अचल तुम ना रुके।

तुम तेज़ हो, उन्माद हो
विवेक-बाहु बल हो तुम।
दामिनिपति, ये मनुज श्रेष्ठ
विराट शक्ति दल हो तुम।

तुम आग हो, अंगार हो,
तुम प्रेरणा का हार हो।
तुम श्रेष्ठ हो, तुम श्रेष्ठ थे,
हीर की तुम धार हो।

तुम उठ कर बस आँखें दिखाओ,
स्र्वस्व उथल हो जयेगा।
इस दुखः की क्या है बिसात,
पत्थर तरल हो जयेगा।

उर्जा तुम, तुम्ही वेग,
'सबको' नचाये तुम्हारा 'भय'।
हे क्रान्तिदूत, हे कालजयी,
नमन धीर, तुमहारी जय ।

-मनव

1 comment:

abhas said...

excellent my dear! trying to say anything else would be trying to light a lamp in broad daylight! simply excellent!