Tuesday, March 15, 2011

हमारा 'उफ' बोलना भी कत्ल हो गया

जबाँ हमारी की खता, इतनी भी थी क्या?
अपनी आँखों की वैह्शियत का नज़ारा तो देखिये | 
की उनसे, छूरियों  पे छूरियाँ चलाते हैं यूं आप
और हमारा 'उफ' बोलना भी कत्ल हो गया?

मरकर ही शायद सुकून लिखा मेरी कहानी में
दे दे कुछ ऐसा की निकल जाये हलक से ये जान |
होंठों से लब्ज सांप सा छोड़ते हैं यूँ आप
आज लाल खून में, ज़हर  का दख्ल हो गया |

मस्जिद नहीं जाता मैं अब, कुरान पढता तेरी दर पर
मांगता मन्नत जीने की तुमसे, सुन ले मेरे परवर |
अपनी साँसों से लकीरें मेरी, छेड़ते हैं यूँ आप
आज मेरा खुदा भी तेरी हमशक्ल हो गया |

6 comments:

Anonymous said...

"आज मेरा खुदा भी तेरी हमशक्ल हो गया"

Anonymous said...

बहुत खूब

समय said...

शुक्रिया।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

जबाँ हमारी की खता, इतनी भी थी क्या?
अपनी आँखों की वैह्शियत का नज़ारा तो देखिये |

कमाल की पंक्तियाँ हैं...... बहुत खूब

हरीश सिंह said...

" भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" की तरफ से आप को तथा आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामना. यहाँ भी आयें, फालोवर अवश्य बने . . www.upkhabar.in

Patali-The-Village said...

बहुत खूब....