Saturday, August 11, 2007

ये दस दिन कितने भारीं हैं।

हँसने पर भी जो आ जाते
आंसू भी कितने व्यापारी हैं।
आज, बिना नम हो कर रोता
ये दस दिन कितने भारीं हैं।

यादों मे खोना और कहना
कि अब जीना दुशवारी है।
कहता सीने मे जलता दिल
ये दस दिन कितने भारीं हैं।

मै करवट जब भी लेता हूँ
तेरी, कानो मे गूँजे किलकारी है।
तुझे ना पाकर मै सहमा सा
ये दस दिन कितने भारीं हैं।

स्पर्श तेरा, झगडे - बातें
याद मुझे वो सारीं हैं।
अपर्याप्त तेरे लिये मै, पर
ये दस दिन कितने भारी हैं।

ये घड़ी भी जुल्मी, है रुक जाती
अब और दूरी ना गवारी है।
मै वक्त देख, काटूं वक्त को
ये दस दिन कितने भारीं हैं।

तेरे आने की बात नही
तेरी याद ही बन गयी महामारी है।
मै नित जी कर फिर मरता हूँ
ये दस दिन कितने भारीं हैं।

-मनव (Aug 11th '07)

1 comment:

abhas said...

this was one nice..